पटना की सड़कों पर दस  दिन से ज्यादा की अवधि में नावें चली थीं-1967

पटना की सड़कों पर दस  दिन से ज्यादा की अवधि में नावें चली थीं-1967

पटना की सड़कों पर दस  दिन से ज्यादा की अवधि में नावें चली थीं-1967

दिनेश कुमार मिश्र

बिहार की राजधानी पटना में यूँ तो बाढ़ के रिकार्ड बीसवी सदी के प्रारम्भ से मिलते है पर देश के आजाद होने के बाद 1948, 1954, 1959, 1967, 1975, 1976, 1984, 1993, 1998, 2004, 2007, 2014 और 2019 में भी इन घटनाओं में कोई कमी आयी हो, ऐसा नहीं है। हर बार इन बाढ़ों का कारण पानी की निकासी की समस्या के रूप में देखा जाता है। समस्या के अध्ययन के लिये विशेषज्ञ बुलाये जाते हैं, कमेटियाँ बनती है, भविष्य के लिये कार्यक्रम बनते हैं और फिर ‘ढाक के वही तीन पात’ पर जाकर बात अटक जाती है। यहाँ हम 1967 की बाढ़ की बात कर रहे हैं। यह भी इस लिये क्योंकि देश की आजादी के बाद यह पहला मौका था जब जुलाई के महीने तक इस साल पूरा राज्य भयंकर और सरकार द्वारा घोषित अकाल से जूझ रहा था। राज्य की इस त्रासदी में राजधानी पटना भी शामिल थी। एकाएक परिदृश्य के पलटने की यह कहानी स्मरणीय है और यहाँ हम इसी की चर्चा करेंगे।

सूखे के बाद प्रचंड वर्षा

 18 सितम्बर, 1967 से पटना में जो बारिश शुरू हुई उसने 20 सितम्बर आते-आते पटना शहर में बाढ़ जैसे हालात पैदा कर दिये थे। कहते हैं कि इतना पानी शहर में पहले कभी नहीं आया था। बिहार की मिलिट्री पुलिस की टुकड़ी बाढ़ में फँसे लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाने के लिये  लगा दी गयी थी जो मुख्यतः राजेंद्र नगर, राजवंशी नगर, श्री कृष्ण नगर और कंकड़बाग के इलाके में सक्रिय थीं। इसके अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) की  टीमें भी बचाव और राहत कार्यों में लगी हुई थीं। इन इलाकों में 19 तारीख से ही पानी भरना शुरू हो गया था और अक्सर ‘बचाओ-बचाओ’ की आवाजें सुनायी पड़ती थीं। पटना शहर में रेलवे लाइन के दक्षिणी इलाके में बाढ़ का प्रकोप अधिक जोरों पर था और वहाँ से पानी की निकासी का कोई रास्ता नहीं था। ऐसी हालत में रिहायशी कॉलोनियों में पानी का लेवल तेजी से ऊपर उठना लाजिमी था। पानी घरों में घुसना शुरू हो गया था और जिन परिवारों का संचित अनाज नीचे वाली मंजिल में रखा था उसे खराब होते देर नहीं लगी।

बचाव टीमों के पहुँचने पर बहुत से परिवारों को जल्दी में अपना जरूरी  सामान भी छोड़ कर जाना पड़ा। राजेंद्र नगर, कंकड़बाग इलाके में बहुत से स्थानों पर छाती भर पानी था और निचले तल पर हर घर में पानी भरा हुआ था। पानी की निकासी के लिये पम्प हाउस चालू कर दिये गये थे मगर जितना पानी निकलता था उससे ज्यादा पानी ऊपर से बरस जाता था। जक्कनपुर, लालजीटोला, मीठापुर, यारपुर, पुरंदरपुर जैसे मोहल्ले तो डूबे ही हुए थे। पटना मध्य के सालिमपुर अहरा में कमर भर पानी था। पश्चिमी पटना के गर्दनीबाग-खगौल सड़क में दोनों तरफ भी झील  जैसा पानी था। पटना का गाँधी मैदान भी अनजान आदमी के लिये बहुत बड़े तालाब जैसा ही दिखायी पड़ता था। राज्य ट्रांसपोर्ट की बसें चलना बन्द हो गया था और फ्रेज़र रोड, जहाँ कभी पानी आया ही नहीं था, वहाँ भी  घुटने तक पानी चल रहा था।

 पटना सिटी में 19 सितम्बर को बारिश के कारण एक घर के ढह जाने से 20 लोग घायल हो गये थे और यहाँ का मंगल तालाब का पानी किनारे तोड़ कर बह निकला था। पटना स्कूल, पाटलिपुत्र क्लब, लेडी स्टीफेन्सन चाइल्ड एंड मैटरनिटी सेंटर, बिहार हितैषी लाइब्रेरी भवन में ले जाना पड़ा था। गुरु गोविंद सिंह पथ, जो पटना सिटी रेलवे स्टेशन को चौक से जोड़ता है, कमर भर पानी में डूबा हुआ था। मुगलकालीन मीर जवान की छावनी का इलाका भी पानी में डूबा हुआ था और उस बस्ती के घरों में पानी घुसा हुआ था। यहाँ के रहने वाले लोगों को मजबूर होकर ऊपर की मंजिलों में जाना पड़ा।

पटना के मुख्य व्यापारिक केंद्र मारूफगंज में भी पानी था और वर्षा का पानी बहुत सी दुकानों के अन्दर तथा थोक व्यापारियों के गोदामों के भीतर प्रवेश कर चुका था।

22 सितम्बर से पटना में पुनपुन के जलग्रहण क्षेत्र में हुई भारी वर्षा के कारण कंकड़बाग और पश्चिमी चिरैयाटांड़ में पानी कुछ समय स्थिर रह कर फिर बढ़ना शुरू हुआ और रात भर में इसका स्तर 6 इंच ऊपर चला आया। बहुत से गरीब लोग जो अब तक इस इलाके में बाढ़ के बावजूद बने हुए थे अब वहाँ से निकलना शुरू हुए और सुरक्षित स्थानों को जाने लगे। राजेंद्र नगर रेलवे क्रॉसिंग के पास रहने वाले लोगों का कहना था कि पिछले चार दिनों से उस क्षेत्र में जो पानी का लेवल था वह घटा नहीं है। इन इलाकों में राहत और बचाव कार्यों के लिये और भी अधिक नावें भेजी गयीं।

राज्यपाल द्वारा बाढ़ क्षेत्र का दौरा

राज्यपाल अनन्त शयनम् अय्यंगार आज के ही दिन मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद सिंह और राजस्व मंत्री इंद्रदीप सिंह के साथ पुनपुन नदी द्वारा पैदा की गयी विनाशलीला को देखने के लिये प्रभावित क्षेत्र देखने के लिये गये। वह राजेंद्र नगर, कंकड़बाग और अगमकुआँ के इलाकों में भी गये और वहाँ  राहत और बचाव कार्यों को देखा। उनका सुझाव था कि हर तरह की गन्दगी को हटाया जाये, साफ पीने के पानी की व्यवस्था हो और नावों की संख्या बढ़ायी जाये। पटना बाइपास रोड पर उन्होंने शरण लिये हुए बाढ़ पीड़ितों से बात की और उनकी शिकायतें सुनीं।  महिलाओं और बच्चों को जब अपने सिर पर घर का बचा हुआ सामान लाते हुए उन्होंने देखा तो वह बहुत दु:खी हुए। उन्हें बताया गया कि कंकड़बाग के दक्षिण में कई गाँवों में लोग जान बचाने के लिये पेड़ों पर रह रहे हैं। मेडिकल कॉलेज में कल बचाये गये 31 विकलांग बच्चों से भी उन्होनें बात की। पुनपुन में आयी बाढ़ के कारण उसके तटबन्धों का टूटना शुरू हुआ।  23 सितम्बर को वह चार स्थानों पर टूटे। पुनपुन के उत्तरी तटबन्ध से पटना के राजेंद्र नगर और कंकड़बाग वाले क्षेत्र को सुरक्षा मिलती है। इस तटबन्ध के टूटने का नतीजा यह हुआ कि पुनपुन का पानी इन कॉलोनियों की ओर बढ़ा क्योंकि यहाँ का लेवल पुनपुन के पानी के नीचे था। अब अगर पानी बरसना नहीं रुकता है तो पटना की रिहायशी कॉलोनियों का भगवान ही मालिक था।

24 सितम्बर  को अगमकुआँ के पास यहाँ से होकर शहर के पानी की सबसे ज्यादा निकासी होती थी उसे सील कर दिया गया ताकि बाहर से बाढ़ का पानी शहर की कॉलोनियों में न जाने पाये। पानी की निकासी के लिये यहाँ दो फायर-ब्रिगेड के पम्प रात-दिन पानी निकालने का काम कर रहे थे। दिक्कत तब हुई जब इस निकास का मुंह सील कर दिये जाने के बाद शहर का वह पानी जो सामान्यतः अगमकुआँ नाले से निकल जाता था उसकी भी निकासी बन्द हो गयी और इन कॉलोनियों के पानी के लेवल पर कोई असर नहीं पड़ा। इसके अलावा शहर का सीवेज का पानी भी इसी नाले से निकलता था। उस पानी के ठहर जाने से पानी सड़ना शुरू हुआ जिससे हर तरफ दुर्गंध व्याप्त हुई और महामारी फैलने का अंदेशा बढ़ा। पुनपुन के पानी को रोकने का नतीजा यह हुआ कि उसका पानी पीछे की ओर तथा अगल-बगल में फैलना शुरू हुआ।  तटबन्धों में पड़ी दरारों में नदी का यह काम आसान कर दिया था। अब यह पानी बख्तियारपुर, हरनौत और पुनपुन अंचलों में फैल रहा था।

गृह निर्माण मंत्री का बयान

आज के ही दिन लोकल सेल्फ गवर्नमेंट गृह निर्माण और पर्यटन मंत्री भोला प्रसाद सिंह ने एक प्रेस-वार्ता करके कहा कि पुनपुन नदी का तटबन्ध 19 सितम्बर से टूटना शुरू हुए और यह तटबन्ध टूटने की घटना और यह सूचना दबा दी गयी। यह तटबन्ध एक दर्जन से अधिक स्थानों पर टूटे थे जिसका नुकसान यह हुआ कि जो लोग बाढ़ से निपटने की तैयारी अपने स्तर पर कर सकते थे, वह अनजान बने रहे और इतनी बड़ी घटना हो गयी। उन्होंने इस पूरे घटनाक्रम की जाँच करवाने का आश्वासन दिया और दोषी व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात कही। सरकार द्वारा तीन स्थानों – जेठुली, सब्बलपुर और सब्बलपुर ब्रिज के पास सड़क को काट कर पानी की निकासी करनी पड़ी तब कहीं जाकर 26 सितम्बर से शहर का पानी निकलना शुरू हुआ और परिस्थिति कुछ दिनों में सामान्य हुई।

पटना से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक सर्चलाइट अपने 24 सितम्बर, 1967 के सम्पादकीय में ‘बाढ़ के बाद का परिदृश्य’ शीर्षक से लिखता है, ‘सरकार के अनुसार पटना और बिहार में बाढ़ का सबसे बड़ा बुरा काल बीत चुका है भले ही इस पानी को पूरी तरह से निकलने में कुछ दिन और लग जायेँ।‘ विभिन्न स्थानों पर जलजमाव है जिससे महामारियों  के फैलने की सम्भावना बनती है।  इसके लिये आवश्यक तैयारी करनी पड़ेगी और इसे रोकने के लिये टीकाकरण की आवश्यकता पड़ेगी। ‘दुर्भाग्यवश इस आपदा के समय सरकार की मशीनरी में न तो कोई दक्षता थी और न ही कोई गति। केवल कुछ मंत्रियों के खोखले आश्वासन और ‘तफरीह’ का जुगाड़ उस समय हुआ जब पटना अपने इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी से गुजर रहा था। इससे अब यह सन्देह पैदा होता है कि पानी उतर जाने के बाद भी सरकार समाधान की दिशा में कुछ कर पायेगी।‘ सड़कें टूटी हैं, उनकी पुनर्स्थापना करनी होगी। पुनपुन के तटबन्धों में पड़ी दरारों को दुरुस्त करना होगा, उसे विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार से निपटना होगा, घरों का निर्माण, कृषि के लिये तैयारी और माहौल बनाना होगा। सबसे बड़ी बात यह है कि वह दिन लद गये जब आपदा पीड़ितों को फुसला लिया जाता था। अब कुछ करके दिखाना पड़ेगा। ‘अभी ही लोग जिस तरह से राहत कार्यों को चलाया जा रहा है उसे लेकर सरकार की बहुत आलोचना कर रहे हैं। बाढ़ के बाद अगर यही रफ्तार रही और यही तौर-तरीका कायम रहा तो जनता की निगाहों में सरकार की बड़ी हेठी  होगी।‘  25 सितम्बर से पिछले चार दिनों से लगातार बारिश की वजह से सामान्य जनजीवन अस्त व्यस्त हो चला था। जलजमाव और सड़कों पर पानी रहने से गाड़ियों का आना-जाना बन्द  था। 26 सितम्बर को पटना के राजेंद्र नगर और कंकड़बाग से पानी का निकलना शुरू हुआ जिसकी रफ्तार कंकड़बाग में तो ठीक थी पर राजेंद्र नगर में निकासी की रफ्तार काफी धीमी थी। सरकार की बहुत सी संस्थाएं जैसे पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग विभाग, पटना इंप्रूवमेंट ट्रस्ट, पटना म्यूनिसिपल कारपोरेशन के संयुक्त प्रयास से यह काम किया जा रहा था। इस साल की शहर की मुसीबतों को देखते हुए सरकार को जरूर लगा कि पटना शहर की जल निकासी का सुधार किये बिना इस समस्या का अन्त नहीं होगा। इस आशय का एक बयान राज्य के मंत्री भोला प्रसाद सिंह ने पटना में 29 सितम्बर के दिन एक प्रेस-वार्ता में दिया। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर के दो ख्यातिलब्ध जल-निकासी विशेषज्ञ एन.वी. मोदक और के.आर. भिड़े का नाम लेकर कहा कि राज्य सरकार पटना की जल-निकासी की समस्या पर उनकी राय लेगी। प्रेस वार्ता में उन्होंने स्वीकार किया कि  दक्षिण पटना की जल-निकासी के लिये नेशनल हाईवे को पाँच स्थानों पर काटना पड़ गया था।

राज्य के उप-मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने भी पटना में इसी दिन एक प्रेस-वार्ता की जिसमें उन्होंने कहा कि इस वर्ष राज्य में अभूतपूर्व सूखा तथा अकाल के बाद चार चक्रों में आयी बाढ़ ने राज्य की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से चौपट कर दिया है। सूखे और अकाल की वजह से 43 लाख  टन खाद्यान्न, जिसकी कीमत 842. 8 करोड़ रुपये होती है, बरबाद हो गया है। यह राज्य के 13 लाख  टन खाद्यान्न की कमी के अतिरिक्त है। 65 लाख एकड़ क्षेत्र पर लगी खड़ी फसल जिससे 32 लाख  टन अनाज मिलता वह हाल की इस बाढ़ में नष्ट हो गयी। राज्य के कुछ हिस्सों में अकाल की घोषणा के साथ हमने केंद्र सरकार से स्थिति से निपटने के लिये 60 करोड़ रुपये माँगे थे जबकि अब तक केंद्र ने हमें केवल 37 करोड़ रुपये मिले हैं। आशा है केंद्र हमारी मदद के लिये आगे आयेगा क्योंकि सूखा-अकाल राहत में हम 46 करोड़ रुपये खर्च कर चुके हैं और दस करोड़ रुपयों की हम को तुरन्त जरूरत है।

सरकार के दस्तावेज़ों से.

राज्य के द्वितीय सिंचाई आयोग की रिपोर्ट (1994) के अनुसार इस साल पूरे राज्य में 2,243 वर्गमील क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित हुआ था। इसके साथ पुनपुन नदी की बाढ़ से इस साल पटना में भारी तबाही हुई थी। पटना शहर के राजेंद्र नगर और कंकड़बाग के इलाके दो सप्ताह तक इस नदी की बाढ़ के पानी से घिरे रहे। किसी आदमी के मारे जाने की कोई खबर तो इस बाढ़ में नहीं थी मगर इस बाढ़ में बहुत से जानवर मारे गये थे। सरकारी और निजी सम्पत्ति का जबरदस्त नुकसान इस बाढ़ में हुआ था।

पटना का 1970 में प्रकाशित गज़ैटियर इस बाढ़ की चर्चा करते हुए कहता है कि इन दोनों कॉलोनियों, राजेंद्रनगर और कंकड़बाग में पानी लगभग दो सप्ताह तक बना रहा था और आम तौर पर यहाँ रहने वालों को घरों से निकाल कर सुरक्षित स्थानों तक पहुँचाया गया। कदमकुआँ  का इलाका भी बाढ़ से प्रभावित था। इस बाढ़ की विभीषिका के पीछे कई कारण बताए गये थे, (1) गंगा की बाढ़ का लेवल (लम्बे समय तक) स्थिर बना हुआ था, (2) हजारीबाग और गया के पहाड़ी क्षेत्र में हुई बारिश की वजह से पुनपुन का पानी बड़े क्षेत्र पर फैल गया और गंगा का लेवल ऊपर उठा होने के कारण यह पानी गंगा में नहीं जा पाया। पुनपुन नदी के बाएं तटबन्ध में जो गैप मौजूद थे उसे बाहर निकल कर नदी का पानी पश्चिमी क्षेत्र में फैला,(3) सोन नदी के पानी में उफान के कारण पटना-गया नहर का पानी भी पूरब की तरफ चला गया था और, (4) 18 से 20 सितम्बर, 1967 को हुई बारिश के कारण पटना के सारे निचले इलाके पानी में डूबे हुए थे। राजेंद्र नगर और कंकड़बाग में पानी इसलिये लम्बे समय तक टिका रहा क्योंकि गंगा में पानी की निकासी करने वाले शहर के सारे नाले (गंगा में बढ़े लेवल के कारण) जाम हो गये थे। आने वाली पीढ़ियों के लिये यह एक कौतूहल का विषय होगा कि कैसे राजेंद्र नगर की सभी सड़कें 3 से 7 फुट गहरे पानी में डूब गयी थीं और इन सड़कों पर दस  दिन से ज्यादा की अवधि में नावें चल रही थीं।

इस तरह के बयान प्रशासन की तरफ से हर बार दिये जाते हैं पर दुर्घटनाएं हैं कि रुकती ही नहीं हैं। समस्या घनघोर वर्षा या नदी की बाढ़ की ही नहीं है। पानी की निकासी की भी है जिसकी ओर यथेष्ट ध्यान नहीं दिया जाता है। कोई सुनेगा क्या?

दिनेश कुमार मिश्र

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